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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के 7वें स्थापना दिवस समारोह में शामिल हुई।

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नई दिल्ली-राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) के 7वें स्थापना दिवस समारोह में भाग लिया।इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह दुनिया को भारत का अमूल्य उपहार है। आयुर्वेद मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए संपूर्ण स्वास्थ्य प्रबंधन पर जोर देता है।राष्ट्रपति ने कहा कि हम हमेशा से अपने आस-पास के पेड़-पौधों के औषधीय महत्व के बारे में जानते हुए उनका उपयोग करते रहे हैं। आदिवासी समाज में जड़ी-बूटियों तथा औषधीय पौधों के ज्ञान की परंपरा और भी समृद्ध रही है। लेकिन जैसे-जैसे समाज आधुनिकता को अपनाता गया, हम प्रकृति से दूर होते गए और हमने उस पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना बंद कर दिया। हमारे लिए घरेलू उपचार अपनाने की जगह डॉक्टर से दवा लेना आसान हो गया।अब लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। एकीकृत चिकित्सा प्रणाली का विचार आज पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रहा है। अलग-अलग चिकित्सा प्रणालियां एक-दूसरे की पूरक प्रणालियों के रूप में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने में मदद कर रही हैं।राष्ट्रपति ने कहा कि काफी लंबे समय से आयुर्वेद में हमारी अटूट आस्था रही है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इसी आस्था का फायदा उठाकर भोले-भाले लोगों को ठगते हैं, भ्रामक जानकारी फैलाते हैं और झूठे दावे करते हैं।

जिससे न केवल जनता के पैसे और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है, बल्कि आयुर्वेद की छवि भी धूमिल होती है। उन्होंने कहा कि लोगों को अशिक्षित डॉक्टरों के पास न जाना पड़े, इसके लिए अधिक से अधिक योग्य डॉक्टरों की आवश्यकता है। उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में आयुर्वेद से जुड़े कॉलेजों और छात्रों की संख्या में हुई उल्लेखनीय वृद्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले समय में योग्य आयुर्वेदिक डॉक्टरों की उपलब्धता और बढ़ेगी।

राष्ट्रपति ने कहा कि आयुर्वेद का विकास न केवल मनुष्यों के लिए बल्कि पशुओं और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा। उन्होंने कहा कि बहुत से पेड़-पौधे इसलिए विलुप्त हो रहे हैं क्योंकि हमें उनकी उपयोगिता ज्ञात नहीं है। जब हम उनका महत्व जान जांएगे तो उनका संरक्षण करेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े लोग अक्सर दावा करते हैं कि उनकी पद्धति सर्वोत्तम है। आपस में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होना अच्छी बात है, लेकिन एक-दूसरे की आलोचना करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियों से जुड़े लोगों के बीच सहयोग की भावना होनी चाहिए। सभी का उद्देश्य रोगियों को स्वस्थ करना और मानवता का भला करना होना चाहिए। हम ‘सर्वे सन्तु निरामया’ अर्थात ‘ सभी के रोग मुक्त होने’  की कामना करते है ।

राष्ट्रपति ने कहा कि आयुर्वेद की प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए हमें अनुसंधान और औषधियों की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करने और आयुर्वेद शिक्षण संस्थानों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान ने पारंपरिक शिक्षा को आधुनिक तकनीक के साथ जोड़कर, बहुत कम समय में आयुर्वेदिक चिकित्सा, शिक्षा, अनुसंधान और समग्र स्वास्थ्य सेवा में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है।

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