गोविंद गुरु की 165वीं जन्मजयंती पर आयोजन, “निष्पाप जीवण अर् सतत सिरजण रो पर्याय है ज्योतिपुंज ” – डॉ देव कोठारी।

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‘जीवण अर् सिरजण’ समकालीन वागड़ी साहित्य रा भीष्मपितामह ज्योतिपुंज।उदयपुर– राजस्थानी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय और युगधारा : साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक मंच के संयुक्त तत्वावधान में प्रो सुनीता मिश्रा, कुलपति, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में गोविंद गुरु जी की 165वीं जन्म जयंती के अवसर पर “माटी री सौरम” ज्योतिपुंज : जीवण अर् सिरजण विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद युगधारा के संस्थापक डॉ ज्योतिपुंज जी के संपूर्ण जीवन एवं कृतित्व को समर्पित यह आयोजन पंडित दीनदयाल उपाध्याय सभागार में किया गया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में पधारे सभी मेहमानों एवं श्रोताओं का राजस्थानी विभागाध्यक्ष डॉ सुरेश सालवी ने स्वागत करते हुए राजस्थानी भाषा के समकालीन वागड़ी साहित्य के भीष्म पितामह जयप्रकाश पंड्या ‘ज्योतिपुंज’ के बारे में अपने विचार रखे। युगधारा की अध्यक्ष किरण बाला ‘किरन’ ने “सिरजण रौ पुण्य कर्म मिनख ने अमर कर देवे अर् साहित्य जनसमूह में सांस्कृतिक चेतना जागृत करे” कहते हुए युगधारा का परिचय दिया एवं उसके द्वारा आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए भविष्य में इस संस्था के विकास की बात कही। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता प्रो हेमंत द्विवेदी ने ज्योतिपुंज जी के साहित्य और उनके जीवन से जुड़े प्रसंगों को स्मृत करते हुए बताया कि “नियमित ठहराव एवं शांति के ऋषिवर हैं ज्योतिपुंज” । सत्र के विशेष वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार ऋषभदेव से पधारे उपेंद्र अणु ने ज्योतिपुंज का जीवन परिचय और जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंगों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि “ज्योतिपुंज जी का जीवन संघर्षों में रहते हुए भी वे साहित्य को पूर्ण समर्पित हैं। इनका जीवन और सृजन प्रेरणादायक है।”सारस्वत सान्निध्य प्रदान कर रहे ज्योतिपुंज ने अपने जीवन की अमूल्य घटनाओं और वागड़ी साहित्य के बारे में बताया और कहा कि हमारी मातृ भाषा ही हमारे संस्कारों की उचित संवाहक होती है। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ लोकेश राठौड़ ने किया।जोधपुर से पधारे डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, अध्यक्ष राजस्थानी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय ने साहित्यिक सत्र के मुख्य आतिथ्य में ज्योतिपुंज जी के बारे में बताते हुए उनके राजस्थानी भाषा में महाकाव्य “गोविंद गुरु नो चौपड़ो” के 18 शतकों के केंद्र विषय को विश्लेषित कर व्यक्त किया, उन्होंने इस ग्रन्थ को “कर्मयोगी गोविंद गुरु रै कीरत रौ महाकाव्य” कहा,साथ ही कहा कि यह ग्रन्थ ज्योतिपुंज को आधुनिक राजस्थानी साहित्य का प्रथम महाकवि सिद्ध करता है। सत्र की अध्यक्षता कर रहे नाथद्वारा के वरिष्ठ साहित्यकार माधव नागदा ने “वागड़ लोकसंस्कृति के चितेरे कवि हैं ज्योतिपुंज” यह कहते हुए उनके हिंदी में रचित पद्य साहित्य के बारे में चर्चा की। सत्र के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक प्रो कुंदन माली ने इनके रचित हिंदी तथा राजस्थानी गद्य साहित्य पर आलोचना के माध्यम से महत्व बताया और उन्हें वाग्वर साहित्य का शाश्वत आलोक कहा। साथ ही डूंगरपुर के वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश पंचाल ने ज्योतिपुंज द्वारा रचित राजस्थानी पद्य साहित्य पर विस्तृत बात करते हुए कहा कि “वागड़ भाषा साहित्य के कल्पवृक्ष हैं ज्योतिपुंज।”इसी सत्र में ज्योतिपुंज जी की सद्य प्रकाशित पोथी राजस्थानी की आलोचना कृति ‘कूंत कातता सबद’ का लोकार्पण किया गया एवं गोविंद गुरु नो चोपड़ो को भी सदन के समक्ष विधिवत्त रूप से लोक को समर्पित किया गया।
सत्र का संचालन युगधारा के पूर्व अध्यक्ष अशोक जैन ‘मंथन’ ने किया।समापन सत्र के अध्यक्ष प्रो देव कोठारी ने “निष्पाप जीवण अर् सतत सिरजण रो पर्याय है ज्योतिपुंज ” कहते हुए राजस्थानी भाषा में वागड़ी में रचित साहित्य में ज्योतिपुंज जी के योगदान के बारे में बताया। मुख्य अतिथि विज्ञान महाविद्यालय के प्रोफेसर कुंज बिहारी जोशी,
ने ज्योतिपुंज जी के रचनाकर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वागड़ी को स्वरूप में लाने का मूल कर्म आपने किया।
विशिष्ट अतिथि शिवदान सिंह जोलावास ने ज्योतिपुंज के साहित्य को अनूठा बताया तथा मातृभाषा की महत्ता पर बात की एवं प्रकाश तातेड़ ने उन पर लिखी काव्य पंक्तियां प्रस्तुत की…. वागड़ री माटी मायं,
उपजे रतन अनेक, हीरे जैड़ा चमक रिया ज्योतिपुंज जी एक…..साथ ही कहा कि “जैसा इनका नाम है
वैसे इनके गुण हैं”। उनके सुपुत्र डॉ विभूति पांड्या ने उनके जीवटता एवं अंतहीन सृजनशीलता के बारे में बताया।
इस अवसर पर उनकी अर्द्धांगिनी मंजुला पंड्या उपस्थित रही।अंत मे डॉ निर्मल गर्ग ने “लोगों को महान बनने की ओर अग्रसर करने वाले हैं ज्योतिपुंज” कहते हुए सभी को धन्यवाद प्रेषित किया। कार्यक्रम में युगधारा से नरोत्तम व्यास, पुष्कर गुप्तेश्वर, शैलेन्द्र सिंह सुधर्मा , लोकेश चौबीसा, पूनम भू,
तरुण दाधीच, अनुश्री राठौड़, गोविंद सिंह, बनवारी लाल पारीक, श्रेणीदान चारण, सिम्मी सिंह, दीपा पंत, सूर्यप्रकाश सुहालका,
गोविंद लाल शर्मा, शकुंतला सोनी, अरुण त्रिपाठी, कुसुम भारद्वाज, विनोद उपाध्याय, विपिन उपाध्याय, आकांक्षा, प्रियंका, बृजराज सिंह जगावत,
रजनी शर्मा, अनीता जैन व अन्य कई सदस्य और विश्वविद्यालय से डॉ हुसैनी बोहरा, शिक्षक, विद्यार्थी और शोधार्थी उपस्थित रहे। शहर के जाने माने साहित्यकारों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति दी।

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