“पत्रकार बनाम अध्यक्ष: दिल्ली कोर्ट ने किया सिमरन सोधी की वापसी, FCC में चुनाव से पहले मचा घमासान!”

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नई दिल्ली, 23 मार्च 2025 —दिल्ली की अदालत ने विदेशी संवाददाता क्लब (FCC) की सीनियर सदस्य और जानी-मानी पत्रकार सिमरन सोधी को क्लब से निष्कासित करने के फैसले को ग़ैरकानूनी करार देते हुए उनकी सदस्यता बहाल कर दी है। यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब FCC में चुनावों को लेकर भारी खींचतान और कानूनी लड़ाई चल रही है।जिला न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने अपने विस्तृत आदेश में कहा कि 15 अक्टूबर 2024 को जारी निष्कासन पत्र क्लब के बायलॉज के तहत आवश्यक गवर्निंग कमेटी के प्रस्ताव के बिना जारी किया गया, जो कि नियमों और प्राकृतिक न्याय दोनों का उल्लंघन है।अदालत ने सिर्फ निष्कासन को अवैध ठहराया ही नहीं, बल्कि पूरे घटनाक्रम को लेकर FCC की वरिष्ठ नेतृत्व टीम और उनकी वकील पर भी कड़ी टिप्पणी की।”एक प्रतिष्ठित संगठन के दो वरिष्ठ सदस्य संस्था के हित में काम करने के बजाय एक-दूसरे को बाहर करने में लगे हैं, और वह भी खुले कोर्ट में कीचड़ उछाल कर,”
— अदालत ने अपने आदेश में कहा।
सुनीता भारद्वाज पर भी सवाल
सुनवाई के दौरान एक और बड़ा विवाद उस समय सामने आया जब सिमरन सोधी ने प्रतिवादी पक्ष की वकील सुनीता भारद्वाज पर हितों के टकराव (conflict of interest) का आरोप लगाया।
उन्होंने बताया कि सुनीता भारद्वाज पहले उन्हें एक मानहानि केस में रिप्रेज़ेंट कर चुकी हैं और उनके निजी संवादों की जानकारी रखती हैं।अदालत ने यह मुद्दा गंभीर माना और कहा कि यह बार काउंसिल ऑफ इंडिया की आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता है, और यदि शिकायत करनी हो तो वादी बार काउंसिल में जाएं।
क्या था पूरा मामला?
4 अक्टूबर 2024 को सिमरन सोधी और अन्य GC सदस्यों ने अध्यक्ष एस. वेंकट नारायण के खिलाफ नो-कॉन्फिडेंस मोशन पास किया और खुद को अंतरिम अध्यक्ष घोषित किया।
जवाब में 8 अक्टूबर को उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा गया।
15 अक्टूबर को, जवाब देने के लिए दी गई समयसीमा समाप्त होने से पहले ही, उन्हें क्लब से निष्कासित कर दिया गया — बिना किसी सुनवाई और प्रस्ताव के।
अदालत का फैसला
अदालत ने पाया कि क्लब के नियम 4(i) और 4(j) के तहत केवल गवर्निंग कमेटी ही निष्कासन का निर्णय ले सकती है और निष्कासन से पहले सदस्य को सुनवाई का पूरा मौका दिया जाना चाहिए।
“इस मामले में ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है, न ही कोई सुनवाई हुई। इसलिए निष्कासन आदेश कानून की दृष्टि में अमान्य है।”
— न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा
अदालत ने सिमरन सोधी की सदस्यता को बहाल करते हुए यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया में अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी, लेकिन निष्पक्षता बनाए रखना अनिवार्य है।
चुनावों पर असर
सिमरन सोधी ने यह भी कहा कि 17 मार्च को जारी वोटर लिस्ट में उनका नाम जानबूझकर नहीं जोड़ा गया, जबकि कोर्ट में उनकी सदस्यता का मामला विचाराधीन था।हालांकि अदालत ने चुनाव अधिकारी पर कोई सीधा आदेश नहीं दिया, लेकिन यह स्पष्ट किया कि इस तरह की प्रक्रिया उचित नहीं है।(Order_Simran Sodhi)Pdf
पत्रकारिता का लोकतंत्र खतरे में?
FCC, जो पत्रकारिता के क्षेत्र में एक सम्मानित संस्था मानी जाती है, अब खुद आंतरिक कलह और अदालतों के आदेशों के घेरे में आ चुकी है।यह मामला अब सिर्फ एक क्लब विवाद नहीं, बल्कि पत्रकारिता के लोकतंत्र, संस्थागत पारदर्शिता और कानूनी जवाबदेही का प्रतीक बन चुका है।

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