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“किरन हूँ मैं” काव्य संग्रह का भव्य लोकार्पण समारोह सम्पन्न।

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उदयपुर– युगधारा साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैचारिक मंच की अध्यक्ष किरण बाला ‘किरण’ के नवीन काव्य संग्रह “किरन हूँ मैं” का भव्य लोकार्पण समारोह मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के अतिथि सभागार में सुसम्पन्न हुआ।इस गरिमामय अवसर के मुख्य अतिथि श्री पंकज ओझा (आरएएस), अतिरिक्त आयुक्त, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि नियंत्रण, राजस्थान सरकार रहे। समारोह के अध्यक्ष प्रो कर्नल शिवसिंह सारंगदेवोत थे। विशिष्ट अतिथियों के रूप में प्रो नवीन नंदवाना एवं रेखा अरोड़ा ‘स्मित’ ने काव्य संग्रह पर समीक्षात्मक वक्तव्य प्रस्तुत किए।मुख्य अतिथि पंकज ओझा ने कहा, “संगीत एवं साहित्य के बिना मनुष्य पशु के समान होता है। साहित्य जीवन को नवीन दृष्टि देता है और समाज को संवेदनशील एवं समृद्ध बनाता है।” उन्होंने किरण बाला को इस श्रेष्ठ काव्य-प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए कहा कि रचनाओं में ईश्वर-प्रेम, भक्ति और समर्पण की गहन अनुभूति परिलक्षित होती है।प्रो नवीन नंदवाना ने कहा कि इस संकलन में प्रकृति का मानवीकरण, आशावाद का संदेश, भावनात्मक गहराई तथा सामाजिक चेतना स्पष्ट झलकती है। काव्य में आत्मचिंतन, संस्कृति से जुड़ाव और मानवीय संवेदनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है, जो पाठकों को आरंभ से अंत तक बांधे रखती है। इस तरह का सृजन वर्तमान में कम ही हो रहा है। साहित्य सुधि पाठकों के लिए संकलन संग्रहणीय है। हिंदी कवि की महान काव्य परंपरा में अपने भावसूत्र जोड़ता किरण बाला का यह काव्य संग्रह ‘किरन हूँ मैं’ उसी मणिमाला का एक मोती है।रेखा लोढ़ा स्मित ने कहा कि किरण की कविताओं में अव्यक्त को व्यक्त करने की कला है। उनके काव्य में व्यष्टि से समष्टि तक की यात्रा है, साथ ही उनकी अंतरराष्ट्रीय साहित्य-यात्राओं की झलक भी रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित होती है। विशेषतः कृष्ण पर आधारित रचनाएं उनके गहरे आध्यात्मिक भाव एवं उनकी दिव्यता को उजागर करती हैं। इनकी रचनाएं मात्र शब्दों का जाल नहीं गहरी अनुभूतियों को ग्रहण करता सच्चा सृजन है।ज्योतिपुंज ने कहा कि “किरण हूं मैं” में किरण बाला के स्वाभिमान, सांस्कृतिक चेतना, और नारी सशक्तिकरण के स्वर मुखरित हैं। यह युगधारा मंच के लिए भी गौरव का विषय है कि उनकी प्रथम महिला अध्यक्ष का रचनात्मक लोकार्पण एक ऐतिहासिक आयोजन बना।
इस अवसर पर किरण के समस्त परिवारजन उपस्थित रहे चेतन जीनगर ने कहा कि मम्मी के सृजन में जीवन एवं सामाजिक परिवेश की अनुभूतियां है। वे शब्दों को जीवन में रुपायित करती हैं। कोमल जीनगर ने अपनी बात इस प्रकार अभिव्यक्त की कि इ नकी लेखनी में कोई शोर नहीं है। एक ऐसी खामोशी है, जो भीतर तक उतर जाती है।राकेश जीनगर ने किरण के सृजन को अद्भुत गहराई वाला सृजन कहा।किरण बाला ने अपनी साहित्यिक यात्रा पर बात की

साथ ही कहा कि पुस्तकें बहुत बोलती हैं, हाथ में आते ही बतियाने लगती है, उन्हें सुनना पड़ता है।इस समारोह को आस पास के कई जिलों के 150 से अधिक सृजनधर्मी एवं साहित्यप्रेमियों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से सफल बनाया। इस अवसर पर माधव नागदा, प्रमोद सनाढ्य, सूर्य प्रकाश दीक्षित, अफजल खान ‘अफजल’, राजकुमार पालीवाल, डॉ. मंजू चतुर्वेदी, डॉ. सरवत खान, डॉ. मधु अग्रवाल, इक़बाल हुसैन ‘इक़बाल’, अरुण चतुर्वेदी, स्वाति शकुन, पुरुषोत्तम शाकद्वीपीय सहित राजस्थान के विभिन्न जिलों से पधारे अनेक वरिष्ठ साहित्यकार, युगधारा के पूर्व अध्यक्ष मदन क्षितिज, पुरुषोत्तम पालीवाल, नरोत्तम व्यास, अशोक जैन ‘मंथन’, उपस्थित रहे साथ ही डॉ मनोहर श्रीमाली, प्रो श्रीनिवासन अय्यर, पुष्कर गुप्तेश्वर, डॉ सिम्मी सिंह जेठानंद, घनश्याम सिंह कीनिया, हेमेंद्र जानी, अर्जुन पार्थ, शिवरतन जी पुष्कर, सुनिता सिंह, चंद्रकांता बंसल, विजय निष्काम आदि कई वरिष्ठ साहित्यकारों से सदन खचाखच भरा रहा। कई संस्थाओं के संस्थापकों एवं संस्था अध्यक्षों ने किरण का अभिनंदन किया।कार्यक्रम का कुशल संचालन दीपा पंत एवं शीतल द्वारा किया गया। स्वागत उद्बोधन श्याम मठपाल ने प्रस्तुत किया तथा आभार ज्ञापन डॉ. सिम्मी सिंह द्वारा किया गया।कार्यक्रम ने न केवल साहित्य के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाया, अपितु नवोदित रचनाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी सिद्ध हुआ।

 

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