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प्रभाष जी ने अपने सहयोगियों से कभी कोई द्वेष नहीं रखा – राम बहादुर राय।

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नई दिल्ली-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के कला निधि प्रभाग ने आज “जनसत्ता के प्रभाष जोशी” पुस्तक का लोकार्पण और उस पर परिचर्चा का आयोजन किया। इस पुस्तक का संपादन वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और आईजीएनसीए के अध्यक्ष ‘पद्म भूषण’ श्री राम बहादुर राय ने किया है।कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री राम बहादुर राय ने की। वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार श्री बनवारी जी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। आधार वक्तव्य इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने दिया जबकि विशिष्ट वक्ता के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री एवं भारत सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. अशोक वाजपेयी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम के प्रारंभ में, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने स्वागत भाषण दिया।श्री राम बहादुर जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि “जनसत्ता के प्रभाष जोशी” पुस्तक प्रभाष जी को पुनः स्मरण करने के लिए लिखी गई है। इसका उद्देश्य नई पीढ़ी को उन्हें जानने, पहचानने और समझने में सक्षम बनाना है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रभाष जी एकमात्र ऐसे हिंदी संपादक थे जिन्होंने एक अंग्रेजी अखबार भी निकाला। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस का चंडीगढ़ संस्करण और फिर जनसत्ता शुरू किया।उन्होंने कहा कि प्रभाष जी का व्यक्तित्व अत्यंत महान था। उन्होंने अपने सहयोगियों के प्रति कभी द्वेष नहीं रखा, उन्हें पूरी स्वतंत्रता दी। उन्होंने कहा कि प्रभाष जी के जीवन में निरंतरता थी और हम उस निरंतरता को कैसे समझते हैं, यह हम पर निर्भर करता है।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image002F3JR.jpg प्रभाष जी ने जो कुछ भी लिखा, उसे प्रतिक्रिया में नहीं, बल्कि पूरे विश्वास के साथ लिखा। प्रभाष जी की आज भी ज़रूरत है और हमेशा रहेगी। उन्होंने सफलता की नहीं, सार्थकता की खोज की।विशिष्ट अतिथि बनवारी जी ने कहा कि प्रभाष जी एक असाधारण व्यक्तित्व थे, इसलिए उन पर प्रकाशित पुस्तक का भी असाधारण होना स्वाभाविक है। यह पुस्तक प्रभाष जी का एक अंतरंग संस्मरण है। यह अच्छी तरह से लिखी गई है, पढ़ी गई है, और मैं कामना करता हूँ कि इसे व्यापक रूप से पढ़ा जाए। श्री बनवारी ने पत्रकारिता से परे प्रभाष जी के जीवन के रोचक पहलुओं पर बात की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उनके जीवन और लेखन में निरंतरता है और उनके लेखन के किसी एक विशेष कालखंड के आधार पर उनका मूल्यांकन करना अनुचित होगा।

https://static.pib.gov.in/WriteReadData/userfiles/image/image0038T7A.jpgडॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि इस पुस्तक में प्रभाष जी, उनके विविध आयामों और उनकी पत्रकारिता के विविध पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया गया। आज जिस तरह की पत्रकारिता और संपादक हम देखते हैं, उसे देखते हुए प्रभाष जी के बारे में जानना किसी परीकथा जैसा लगता है। लोग पूछेंगे, “क्या ऐसे संपादक भी होते थे?” उन्होंने राग-द्वेष की सारी भावनाओं को एक तरफ रखकर, एक पत्रकार के रूप में अपना कर्तव्य निभाया।विशिष्ट वक्ता डॉ. अशोक वाजपेयी ने प्रभाष जोशी की असाधारण पत्रकारिता पर बोलते हुए कहा कि प्रभाष जोशी के स्थान को रेखांकित करने के लिए कोई भी चर्चा पर्याप्त नहीं होगी। कार्यक्रम की शुरुआत में, प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि यह पुस्तक इसलिए विशिष्ट है क्योंकि यह पत्रकारिता जगत के शिखर पुरुष प्रभाष जोशी पर केंद्रित है। मनोज मिश्र ने कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन किया। वरिष्ठ पत्रकार और जनसत्ता के पूर्व संपादक राहुल देव ने भी परिचर्चा में अपने विचार साझा किए।पुस्तक चर्चा सत्र में किताबों के प्रति जनता की रुचि और प्रभाष जोशी के पत्रकारिता दृष्टिकोण की प्रासंगिकता पर सार्थक चर्चा हुई। अपने वक्तव्यों में, वक्ताओं ने कहा कि प्रभाष जोशी भारतीय पत्रकारिता के उस युग के प्रतीक हैं जब कलम विचारों और मूल्यों, दोनों के माध्यम के रूप में कार्य करती थी। उनकी पत्रकारिता ने भारतीय समाज में लोक सत्ता की एक सुदृढ़ परंपरा स्थापित की।कार्यक्रम का आयोजन आईजीएनसीए के समवेत सभागार में किया गया, जिसमें दिल्ली सहित देश भर से कई वरिष्ठ पत्रकारों, विद्वानों और छात्रों ने भाग लिया।

 

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