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मन की बात की 91वीं कड़ी में प्रधानमंत्री के सम्बोधन का मूल पाठ

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मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार। ‘मन की बात’ का ये 91वाँ episode है। हम लोगों ने पहले इतनी सारी बातें की हैं, अलग-अलग विषयों पर अपनी बात साझा की है, लेकिन, इस बार ‘मन की बात’ बहुत खास है। इसका कारण है, इस बार का स्वतंत्रता दिवस, जब भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष पूरे करेगा। हम सभी बहुत अद्भुत और ऐतिहासिक पल के गवाह बनने जा रहे हैं। ईश्वर ने ये हमें बहुत बड़ा सौभाग्य दिया है। आप भी सोचिए, अगर हम गुलामी के दौर में पैदा हुए होते, तो, इस दिन की कल्पना हमारे लिए कैसी होती ? गुलामी से मुक्ति की वो तड़प, पराधीनता की बेड़ियों से आज़ादी की वो बेचैनी – कितनी बड़ी रही होगी। वो दिन, जब हम, हर दिन, लाखों-लाख देशवासियों को आज़ादी के लिए लड़ते, जूझते, बलिदान देते देख रहे होते। जब हम, हर सुबह इस सपने के साथ जग रहे होते, कि मेरा हिंदुस्तान कब आज़ाद होगा और हो सकता है हमारे जीवन में वो भी दिन आता जब वंदेमातरम और भारत माँ की जय बोलते हुए, हम आने वाली पीढ़ियों के लिए, अपना जीवन समर्पित कर देते, जवानी खपा देते।

साथियो, 31 जुलाई यानी आज ही के दिन, हम सभी देशवासी, शहीद उधम सिंह जी की शहादत को नमन करते हैं। मैं ऐसे अन्य सभी महान क्रांतिकारियों को अपनी विनम्र श्रद्दांजलि अर्पित करता हूँ जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

साथियो, मुझे ये देखकर बहुत ख़ुशी होती है, कि, आज़ादी का अमृत महोत्सव एक जन आंदोलन का रूप ले रहा है। सभी क्षेत्रों और समाज के हर वर्ग के लोग इससे जुड़े अलग-अलग कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। ऐसा ही एक कार्यक्रम इस महीने की शुरुआत में मेघालय में हुआ। मेघालय के बहादुर योद्धा, यू. टिरोत सिंह जी की पुण्यतिथि पर लोगों ने उन्हें याद किया। टिरोत सिंह जी ने खासी हिल्स (Khasi Hills) पर नियंत्रण करने और वहाँ की संस्कृति पर प्रहार करने की अंग्रेजों की साजिश का जमकर विरोध किया था। इस कार्यक्रम में बहुत सारे कलाकारों ने सुंदर प्रस्तुतियाँ दी। इतिहास को ज़िंदा कर दिया। इसमें एक carnival का आयोजन भी किया गया, जिसमें, मेघालय की महान संस्कृति को बड़े ही खूबसूरत तरीके से दर्शाया गया। अब से कुछ हफ्ते पहले, कर्नाटका में, अमृता भारती कन्नडार्थी नाम का एक अनूठा अभियान भी चलाया गया। इसमें राज्य की 75 जगहों पर आज़ादी के अमृत महोत्सव से जुड़े बड़े भव्य कार्यक्रम आयोजित किये गए। इनमें कर्नाटका के महान स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने के साथ ही स्थानीय साहित्यिक उपलब्धियों को भी सामने लाने की कोशिश की गई।

साथियो, इसी जुलाई में एक बहुत ही रोचक प्रयास हुआ है जिसका नाम है – आज़ादी की रेलगाड़ी और रेलवे स्टेशन। इस प्रयास का लक्ष्य है कि लोग आज़ादी की लड़ाई में भारतीय रेल की भूमिका को जानें। देश में अनेक ऐसे रेलवे स्टेशन हैं, जो, स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास से जुड़े हैं। आप भी, इन रेलवे स्टेशनों के बारे में जानकार हैरान होंगे। झारखंड के गोमो जंक्शन को, अब आधिकारिक रूप से, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन गोमो के नाम से जाना जाता है। जानते है क्यों? दरअसल इसी स्टेशन पर, कालका मेल में सवार होकर नेताजी सुभाष, ब्रिटिश अफसरों को चकमा देने में सफल रहे थे। आप सभी ने लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन का नाम भी जरुर सुना होगा। इस स्टेशन के साथ राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्लाह खान जैसे जांबांजों का नाम जुड़ा है। यहाँ ट्रेन से जा रहे अंग्रेजों के खजाने को लूटकर वीर क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को अपनी ताक़त का परिचय करा दिया था। आप जब कभी तमिलनाडु के लोगों से बात करेंगे, तो आपको, थुथुकुडी जिले के वान्ची मणियाच्ची जंक्शन के बारे में जानने को मिलेगा। ये स्टेशन तमिल स्वतंत्रता सेनानी वान्चीनाथन जी के नाम पर है। ये वही स्थान है जहाँ 25 साल के युवा वान्ची ने ब्रिटिश कलेक्टर को उसके किये की सजा दी थी।

साथियो, ये लिस्ट काफी लम्बी है। देशभर के 24 राज्यों में फैले ऐसे 75 रेलवे स्टेशनों की पहचान की गई है। इन 75 स्टेशनों को बहुत ही खूबसूरती से सजाया जा रहा है। इनमें कई तरह के कार्यक्रमों का भी आयोजन हो रहा है। आपको भी समय निकालकर अपने पास के ऐसे ऐतिहासिक स्टेशन पर जरुर जाना चाहिए। आपको, स्वतंत्रता आंदोलन के ऐसे इतिहास के बारे में विस्तार से पता चलेगा जिनसे आप अनजान रहे हैं। मैं आसपास के स्कूल के विद्यार्थियों से आग्रह करूँगा, टीचर्स से आग्रह करूँगा कि अपने स्कूल के छोटे-छोटे बच्चों को ले करके जरुर स्टेशन पर जाएँ और पूरा घटनाक्रम उन बच्चों को सुनाएँ, समझाएँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत, 13 से 15 अगस्त तक, एक Special Movement – ‘हर घर तिरंगा- हर घर तिरंगा’ का आयोजन किया जा रहा है। इस movement का हिस्सा बनकर 13 से 15 अगस्त तक, आप, अपने घर पर तिरंगा जरुर फहराएं, या उसे, अपने घर पर लगायें। तिरंगा हमें जोड़ता है, हमें देश के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। मेरा एक सुझाव ये भी है, कि 2 अगस्त से 15 अगस्त तक, हम सभी, अपनी Social Media Profile Pictures में तिरंगा लगा सकते हैं। वैसे क्या आप जानते हैं, 2 अगस्त का हमारे तिरंगे से एक विशेष संबंध भी है। इसी दिन पिंगली वेंकैया जी की जन्म-जयंती होती है जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय ध्वज को design किया था। मैं उन्हें, आदरपूर्वक श्रद्दांजलि अर्पित करता हूँ। अपने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में बात करते हुए मैं, महान क्रांतिकारी Madam Cama को भी याद करूँगा। तिरंगे को आकार देने में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है।

साथियो, आज़ादी के अमृत महोत्सव में हो रहे इन सारे आयोजनों का सबसे बड़ा सन्देश यही है कि हम सभी देशवासी अपने कर्तव्य का पूरी निष्ठा से पालन करें। तभी हम उन अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों का सपना पूरा कर पायेंगे। उनके सपनों का भारत बना पाएंगे। इसीलिए हमारे अगले 25 साल का ये अमृतकाल हर देशवासी के लिए कर्तव्यकाल की तरह है। देश को आज़ाद कराने, हमारे वीर सेनानी, हमें, ये जिम्मेदारी देकर गए हैं, और हमें, इसे पूरी तरह निभाना है।

मेरे प्यारे देशवासियो, कोरोना के खिलाफ हम देशवासियों की लड़ाई अब भी जारी है। पूरी दुनिया आज भी जूझ रही है। Holistic Healthcare में लोगों की बढ़ती रुचि ने इसमें सभी की बहुत मदद की है। हम सभी जानते हैं कि इसमें भारतीय पारम्परिक पद्धतियाँ कितनी उपयोगी हैं। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में, आयुष ने तो, वैश्विक स्तर पर, अहम भूमिका निभाई है। दुनियाभर में आयुर्वेद और भारतीय औषधियों के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। ये एक बड़ी वजह है कि Ayush Exports में record तेजी आई है और ये भी बहुत सुखद है कि इस क्षेत्र में कई नए Start-Ups भी सामने आ रहे हैं। हाल ही में, एक Global Ayush Investment और Innovation Summit हुई थी। आप जानकर हैरान होंगे, कि इसमें, करीब दस  हज़ार करोड़ रूपए के Investment Proposals मिले हैं। एक और बड़ी अहम बात ये हुई है, कि कोरोना काल में, औषधीय पौधों पर research में भी बहुत वृद्धि हुई है। इस बारे में बहुत सी Research Studies Publish हो रही हैं। निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत है।

साथियो, देश में विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों को लेकर एक और बेहतरीन प्रयास हुआ है। अभी-अभी जुलाई महीने में Indian Virtual Herbarium को launch किया गया। यह इस बात का भी उदाहरण है, कि कैसे हम, Digital World का इस्तेमाल अपनी जड़ों से जुड़ने में कर सकते हैं। Indian Virtual Herbarium, Preserved Plants या plant parts की Digital Images का एक रोचक संग्रह है, जो कि, Web पर, Freely Available है। इस Virtual Herbarium पर अभी लाख से अधिक Specimens और उनसे जुड़ी Scientific Information उपलब्ध है। Virtual Herbarium में, भारत की ,  Botanical Diversity की समृद्ध तस्वीर भी दिखाई देती है। मुझे विश्वास है Indian Virtual Herbarium, भारतीय वनस्पतियों पर research  के लिए एक important resource  बनेगा।

मेरे प्यारे देशवासियो, ‘मन की बात’ में हम हर बार देशवासियों की ऐसी सफलताओं की चर्चा करते हैं जो हमारे चेहरे पर मीठी मुस्कान बिखेर देती हैं। अगर कोई success story, मीठी मुस्कान भी बिखेरे, और स्वाद में भी मिठास भरे, तब तो आप इसे जरुर सोने पर सुहागा कहेंगे। हमारे किसान इन दिनों शहद के उत्पादन में ऐसा ही कमाल कर रहे हैं। शहद की मिठास हमारे किसानों का जीवन भी बदल रही है, उनकी आय भी बढ़ा रही है। हरियाणा में, यमुनानगर में, एक मधुमक्खी पालक साथी रहते हैं – सुभाष कंबोज जी।  सुभाष जी ने वैज्ञानिक तरीक़े से मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने केवल छःह बॉक्स के साथ अपना काम शुरू किया था। आज वो करीब दो हज़ार बॉक्सेस में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। उनका शहद कई राज्यों में supply होता है। जम्मू के पल्ली गाँव में विनोद कुमार जी भी डेढ़ हज़ार से ज्यादा कॉलोनियों में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। उन्होंने पिछले साल, रानी मक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया है। इस काम से, वो, सालाना 15 से 20 लाख रूपए कमा रहे हैं। कर्नाटक के एक और किसान हैं – मधुकेश्वर हेगड़े जी। मधुकेश्वर जी ने बताया कि उन्होंने, भारत सरकार से 50 मधुमक्खी कॉलोनियों के लिए subsidy ली थी। आज उनके पास 800 से ज्यादा कॉलोनियां हैं, और वो कई टन शहद बेचते हैं। उन्होंने अपने काम में innovation किया, और वो जामुन शहद, तुलसी शहद, आंवला शहद जैसे वानस्पतिक शहद भी बना रहे हैं। मधुकेश्वर जी, मधु उत्पादन में आपके innovation और सफलता, आपके नाम को भी सार्थक करती है।

साथियो, आप सब जानते हैं कि, शहद को, हमारे पारंपरिक स्वास्थ्य विज्ञान में कितना महत्व दिया गया है। आयुर्वेद ग्रंथों में तो शहद को अमृत बताया गया है। शहद, न केवल हमें स्वाद देता है, बल्कि आरोग्य भी देता है। शहद उत्पादन में आज इतनी अधिक संभावनाएं हैं कि professional पढ़ाई करने वाले युवा भी, इसे, अपना स्वरोजगार बना रहे हैं। ऐसे ही एक युवा हैं – यू.पी. में गोरखपुर के निमित सिंह। निमित जी ने बी.टेक किया है। उनके पिता भी डॉक्टर हैं, लेकिन, पढाई के बाद नौकरी की जगह निमित जी ने स्वरोजगार का फैसला लिया। उन्होंने शहद उत्पादन का काम शुरू किया। Quality Check के लिए लखनऊ में अपनी एक लैब भी बनवाई। निमित जी अब शहद और Bee Wax से अच्छी कमाई कर रहे हैं, और अलग-अलग राज्यों में जाकर किसानों को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। ऐसे युवाओं की मेहनत से ही आज देश इतना बड़ा शहद उत्पादक बन रहा है। आपको जानकार ख़ुशी होगी कि देश से शहद का निर्यात भी बढ़ गया है। देश ने National Beekeeping and Honey Mission जैसे अभियान चलाए, किसानों ने पूरा परिश्रम किया, और हमारे शहद की मिठास, दुनिया तक पहुँचने लगी। अभी इस क्षेत्र में और भी बड़ी संभावनाएं मौजूद हैं। मैं चाहूँगा कि हमारे युवा इन अवसरों से जुड़कर उनका लाभ लें और नई संभावनाओं को साकार करें।

मेरे प्यारे देशवासियो, मुझे हिमाचल प्रदेश से ‘मन की बात’ के एक श्रोता, श्रीमान आशीष बहल जी का एक पत्र मिला है I उन्होंने अपने पत्र में चंबा के ‘मिंजर मेले’ का जिक्र किया है I दरअसल, मिंजर मक्के के फूलों को कहते हैं I जब मक्के में मिंजर आते हैं, तो मिंजर मेला भी मनाया जाता है और इस मेले में, देशभर के पर्यटक दूर-दूर से हिस्सा लेने के लिए आते हैं। संयोग से मिंजर मेला इस समय चल भी रहा है I आप अगर हिमाचल घूमने गए हुए हैं तो इस मेले को देखने चंबा जा सकते हैं I चंबा तो इतना ख़ूबसूरत है, कि यहाँ के लोक-गीतों में बार-बार कहा जाता है –

“चंबे इक दिन ओणा कने महीना रैणा”।

यानि, जो लोग एक दिन के लिए चंबा आते हैं, वे इसकी खूबसूरती देखकर महीने भर यहां रह जाते हैं I

साथियो, हमारे देश में मेलों का भी बड़ा सांस्कृतिक महत्व रहा है I मेले, जन-मन दोनों को जोड़ते हैं I हिमाचल में वर्षा के बाद जब खरीफ की फसलें पकती हैं, तब, सितम्बर में, शिमला, मंडी, कुल्लू और सोलन में सैरी या सैर भी मनाया जाता है I सितंबर में ही जागरा भी आने वाला है। जागरा के मेलों में महासू देवता का आह्वाहन करके बीसू गीत गाए जाते हैं। महासू देवता का ये जागर हिमाचल में शिमला, किन्नौर और सिरमौर के साथ-साथ उत्तराखंड में भी होता है।

साथियो, हमारे देश में अलग- अलग राज्यों में आदिवासी समाज के भी कई पारंपरिक मेले होते हैं। इनमें से कुछ मेले आदिवासी संस्कृति से जुड़े हैं, तो कुछ का आयोजन, आदिवासी इतिहास और विरासत से जुड़ा है, जैसे कि, आपको, अगर मौका मिले तो तेलंगाना के मेडारम का चार दिवसीय समक्का-सरलम्मा जातरा मेला देखने जरुर जाईये। इस मेले को तेलंगाना का महाकुम्भ कहा जाता है। सरलम्मा जातरा मेला, दो आदिवासी महिला नायिकाओं – समक्का और सरलम्मा के सम्मान में मनाया जाता है। ये तेलंगाना ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और आन्ध्र प्रदेश के कोया आदिवासी समुदाय के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। आँध्रप्रदेश में मारीदम्मा का मेला भी आदिवासी समाज की मान्यताओं से जुड़ा बड़ा मेला है। मारीदम्मा मेला जयेष्ठ अमावस्या से आषाढ़ अमावस्या तक चलता है और यहाँ का आदिवासी समाज इसे शक्ति उपासना के साथ जोड़ता है। यहीं, पूर्वी गोदावरी के पेद्धापुरम में, मरिदम्मा मंदिर भी है। इसी तरह राजस्थान में गरासिया जनजाति के लोग वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को ‘सियावा का मेला’ या ‘मनखां रो मेला’ का आयोजन करते हैं।

छत्तीसगढ़ में बस्तर के नारायणपुर का ‘मावली मेला’ भी बहुत खास होता है। पास ही, मध्य प्रदेश का ‘भगोरिया मेला’ भी खूब प्रसिद्ध है। कहते हैं कि, भगोरिया मेले की शुरूआत, राजा भोज के समय में हुई है। तब भील राजा, कासूमरा और बालून ने अपनी-अपनी राजधानी में पहली बार ये आयोजन किए थे। तब से आज तक, ये मेले, उतने ही उत्साह से मनाये जा रहे हैं। इसी तरह, गुजरात में तरणेतर और माधोपुर जैसे कई मेले बहुत मशहूर हैं। ‘मेले’, अपने आप में, हमारे समाज, जीवन की ऊर्जा का बहुत बड़ा  स्त्रोत होते हैं। आपके आस-पास भी ऐसे ही कई मेले होते होंगे। आधुनिक समय में समाज की ये पुरानी कड़ियाँ ‘एक भारत–श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत करने के लिए बहुत ज़रूरी हैं। हमारे युवाओं को इनसे जरुर जुड़ना चाहिए और आप जब भी ऐसे मेलों में जाएं, वहां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर भी शेयर करें। आप चाहें तो किसी खास हैशटैग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे उन मेलों के बारे में दूसरे लोग भी जानेंगे। आप Culture Ministry की website पर भी तस्वीरें upload कर सकते हैं। अगले कुछ दिन में Culture Ministry एक competition भी शुरू करने जा रही है, जहाँ, मेलों की सबसे अच्छी तस्वीरें भेजने वालों को इनाम भी दिया जाएगा  तो फिर देर नहीं कीजिए, मेलों में घूमियें, उनकी तस्वीरें साझा करिए, और हो सकता है आपको इसका ईनाम भी मिल जाए।

मेरे प्यारे देशवासियो, आपको ध्यान होगा, ‘मन की बात’ के एक Episode में मैंने कहा था कि भारत के पास Toys Exports में Powerhouse बनने की पूरी क्षमता है। मैंने Sports और Games में भारत की समृद्ध विरासत की खासतौर पर चर्चा की थी। भारत के स्थानीय खिलौने – परंपरा और प्रकृति, दोनों के अनुरूप होते हैं, Eco-friendly होते हैं। मैं आज आपके साथ भारतीय खिलौनों की सफलता को share करना चाहता हूँ। हमारे Youngsters, Start-ups और Entrepreneurs के बूते हमारी Toy Industry ने जो कर दिखाया है, जो सफलताएँ हासिल की हैं, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आज, जब भारतीय खिलौनों की बात होती है, तो हर तरफ, Vocal for Local की ही गूंज सुनाई दे रही है। आपको ये जानकर भी अच्छा लगेगा, कि भारत में अब, विदेश से आने वाले खिलौनों की संख्या, लगातार कम हो रही है। पहले जहाँ 3 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के खिलौने बाहर से आते थे, वहीँ अब इनका आयात 70 प्रतिशत तक घट गया है और खुशी की बात ये, कि इसी दौरान, भारत ने, दो हज़ार छःह सौ करोड़ रुपए से अधिक के खिलौनों को विदेशों में निर्यात किया है, जबकि पहले, 300-400 करोड़ रुपए के खिलौने ही भारत से बाहर जाते थे और आप तो जानते ही हैं कि ये सब, कोरोना काल में हुआ है। भारत के Toy सेक्टर ने खुद को Transform करके दिखा दिया है। Indian Manufacturers, अब, Indian Mythology, History और Culture पर आधारित खिलौने बना रहे हैं। देश में जगह-जगह खिलौनों के जो Clusters हैं, खिलौने बनाने वाले जो छोटे-छोटे उद्यमी हैं, उन्हें, इसका बहुत लाभ हो रहा है। इन छोटे उद्यमियों के बनाए खिलौने, अब, दुनियाभर में जा रहे हैं। भारत के खिलौना निर्माता, विश्व के प्रमुख Global Toy Brands के साथ मिलकर भी काम कर रहे हैं। मुझे ये भी बड़ा अच्छा लगा, कि, हमारा Start-Up Sector भी खिलौनों की दुनिया पर पूरा ध्यान दे रहा है। वे इस क्षेत्र में कई मजेदार चीजें भी कर रहे हैं। बेंगलुरु में, Shumme (शूमी) Toys नाम का Start-Up Eco-friendly खिलौनों पर focus कर रहा है। गुजरात में Arkidzoo (आर्किड्जू) Company AR-based Flash Cards और AR-based Storybooks बना रही हैं। पुणे की Company, Funvention (फन्वेंशन) Learning, खिलौने और Activity Puzzles (पजल्स) के जरिये Science, Technology और Maths में बच्चों की दिलचस्पी बढ़ाने में जुटी है। मैं खिलौनों की दुनिया में शानदार काम कर रहे ऐसे सभी Manufacturers को, Start-Ups को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। आईये, हम सब मिलकर, भारतीय खिलौनों को, दुनियाभर में, और अधिक लोकप्रिय बनायें। इसके साथ ही, मैं, अभिभावकों से भी आग्रह करना चाहूँगा कि वे अधिक से अधिक भारतीय खिलौने, Puzzles और Games खरीदें।

साथियो, Classroom हो या खेल का मैदान, आज हमारे युवा, हर क्षेत्र में, देश को गौरवान्वित कर रहे हैं। इसी महीने, PV Sindhu ने Singapore Open का अपना पहला ख़िताब जीता है। Neeraj Chopra ने भी अपने बेहतरीन प्रदर्शन को जारी रखते हुए World Athletics Championship में देश के लिए Silver Medal जीता है। Ireland Para Badminton International में भी हमारे खिलाड़ियों ने 11 पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। Rome में हुए World Cadet Wrestling Championship में भी भारतीय खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। हमारे एथलीट सूरज ने तो Greco-Roman Event में कमाल ही कर दिया। उन्होंने 32 साल के लंबे अंतराल के बाद इस Event में Wrestling का Gold Medal जीता है। खिलाड़ियों के लिए तो ये पूरा महीना ही action से भरपूर रहा है। Chennai में 44वें Chess Olympiad की मेजबानी करना भी भारत के लिए बड़े ही सम्मान की बात है। 28 जुलाई को ही इस Tournament का शुभारंभ हुआ है और मुझे इसकी Opening Ceremony में शामिल होने का सौभाग्य मिला। उसी दिन UK में Commonwealth Games की भी शुरुआत हुई। युवा जोश से भरा भारतीय दल वहाँ देश को Represent कर रहा है। मैं सभी खिलाड़ियों और Athletes को देशवासियों की ओर से शुभकामनाएँ देता हूँ। मुझे इस बात की भी खुशी है कि भारत FIFA Under 17 Women’s World Cup उसकी भीमेजबानी करने जा रहा है। यह Tournament अक्तूबर के आस-पास होगा, जो खेलों के प्रति देश की बेटियों का उत्साह बढ़ाएगा।

साथियो, कुछ दिन पहले ही देशभर में 10वीं और 12वीं कक्षा के परिणाम भी घोषित हुए हैं। मैं उन सभी Students को बधाई देता हूँ जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और लगन से सफलता अर्जित की है। महामारी के चलते, पिछले दो साल, बेहद चुनौतीपूर्ण रहे हैं। इन परिस्थितियों में भी हमारे युवाओं ने जिस साहस और संयम का परिचय दिया, वह अत्यंत सराहनीय है। मैं, सभी के सुनहरे भविष्य की कामना करता हूँ।

मेरे प्यारे देशवासियो, आज हमने आजादी के 75 साल पर, देश की यात्रा के साथ, अपनी चर्चा शुरू की थी। अगली बार, जब हम मिलेंगे, तब, हमारे अगले 25 साल की यात्रा भी शुरू हो चुकी होगी। अपने घर और अपनों के घर पर, हमारा प्यारा तिरंगा फहरे, इसके लिए हम सबको जुटना है। आपने इस बार, स्वतंत्रता दिवस को कैसे मनाया, क्या कुछ खास किया, ये भी, मुझसे, जरुर साझा करिएगा। अगली बार, हम, अपने इस अमृतपर्व के अलग-अलग रंगों पर फिर से बात करेंगे, तब तक के लिए मुझे आज्ञा दीजिए। बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

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