आधुनिक एवं विकसित समाज के विकास के लिए निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं निर्भीक न्यायिक व्यवस्था आवश्यक- श्री श्रीवास्तव।

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मुख्य न्यायाधीश राजस्थान उच्च न्यायालय ने नवनिर्मित जिला न्यायालय परिसर का किया लोकार्पण। अजमेर, 20 अप्रैल। राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश माननीय श्री मनींद्र मोहन श्रीवास्तव ने रविवार को अजमेर जिले में नवनिर्मित अत्याधुनिक जिला न्यायालय परिसर का उद्घाटन किया। इस अवसर पर उनके साथ न्यायाधीश श्री इंद्रजीत सिंह और न्यायाधीश श्री महेंद्र कुमार गोयल भी उपस्थित रहे।मुख्य न्यायाधीश श्री श्रीवास्तव ने उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि निष्पक्ष, स्वतंत्र और निर्भीक न्यायिक व्यवस्था किसी भी आधुनिक और विकसित समाज के लिए आवश्यक है। उन्होंने इस भवन को अजमेर के न्यायिक इतिहास में एक ऎतिहासिक मील का पत्थर बताया और कहा कि यह भवन तकनीकी दृष्टि से उन्नत, पर्यावरण के अनुकूल और मानवतावादी मूल्यों को समर्पित है।उन्होंने बताया कि देश में मुकदमों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। इसके अनुपात में न्यायिक अधोसंरचना का विकास उस गति से नहीं हो पाया है। इसके लिए वे प्रदेश में राज्य सरकार से समन्वय स्थापित कर न्यायिक अधोसंरचना के विकास के लिए प्रयासरत है। यह नया भवन इसका द्योतक है। इस भवन से न केवल न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं को एक ही स्थान पर उपयुक्त सुविधाएं मिलेंगी साथ ही पक्षकारों के लिए भी यह न्याय प्राप्ति की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। उन्होंने राष्ट्रीय कोर्ट प्रबंधन प्रणाली, प्री-लिटिगेशन मेडिएशन और तकनीकी संसाधनों के बेहतर उपयोग पर जोर दिया।
मुख्य न्यायाधीश श्री श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि न्यायिक व्यवस्था समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसका सशक्त, पारदर्शी तथा जवाबदेह होना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि लगभग एक लाख से अधिक लंबित प्रकरण हैं। इनमें अधिकांश आपराधिक प्रवृत्ति प्रकरण हैं, जिनके निस्तारण के लिए तकनीकी उपकरणों का उपयोग आवश्यक है। उन्होंने बताया कि वे स्वयं सम्मन एवं वारंट प्रणाली की निगरानी कर रहे हैं। इससे न्याय प्रक्रिया की गति में तेजी आई है। उन्होंने कहा कि बार और बेंच एक-दूसरे के पूरक हैं। इस संबंध में सभी अधिवक्ताओं से पुराने मामलों के शीघ्र निस्तारण में सहयोग देने का अनुरोध किया।उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर मध्यस्थता अधिनियम लागू किया गया है। इसके अंतर्गत प्री-लिटिगेशन सेंटरों की स्थापना की जा रही है। इससे मुकदमों की संख्या को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। अधिवक्ताओं को मध्यस्थ के रूप में तैयार किया जाएगा और सभी स्तरों पर मध्यस्थता केंद्र स्थापित किए जाएंगे।उन्होंने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-फाइलिंग, रिकॉर्ड डिजिटलीकरण जैसी तकनीकों का समुचित उपयोग करते हुए आज की न्यायिक प्रणाली को आधुनिक बनाया जा रहा है। उन्होंने समाज के वंचित, पिछड़े वर्गों, पीड़ित, बालिका एवं बालकों को प्राथमिकता से न्याय उपलब्ध कराने की बात कही।न्यायाधीश श्री महेन्द्र गोयल ने कहा कि अजमेर न्याय क्षेत्र के लगभग 30 लाख निवासियों को इससे लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि पहले 41 न्यायिक अधिकारी अलग-अलग स्थानों पर कार्यरत थे। वहीं अब सभी एकीकृत परिसर में न्यायिक कार्य संपादित करेंगे।उन्होंने अजमेर के न्यायिक इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय ग्राम न्यायालय स्थापित किए गए थे। उनकी अपील सीधे सम्राट से की जा सकती थी। 1818 में ब्रिटिश शासन के दौरान यहां पांच स्तरीय न्यायिक व्यवस्था संचालित होती थी। 1872 में चीफ कमिश्नर कोर्ट की स्थापना हुई और 1926 में जुडिशियल कमिश्नर कोर्ट की स्थापना हुई। जिसकी अपील प्रिवी काउंसिल तक जाती थी। इसके पश्चात 1956 में राजस्थान में विलय के बाद से यहां की न्यायिक व्यवस्था लगातार सुदृढ़ हुई है।न्यायाधीश श्री इंद्रजीत सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि न्याय व्यवस्था न्यायाधीश और अधिवक्ताओं के सामंजस्य से ही सुचारू रूप से चल सकती है। उन्होंने भवन को भव्य, सुंदर और स्वच्छ बनाए रखने का आह्वान किया।जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीमती संगीता शर्मा ने कहा कि यह भवन अजमेर के न्यायिक इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय की शुरुआत है। उन्होंने बताया कि 1956 से पहले न्यायिक कार्य ब्रिटिश शासन के तहत आयुक्त द्वारा संचालित होते थे। अब 74 न्यायालयों के साथ एकीकृत परिसर अधिवक्ताओं और पक्षकारों दोनों के लिए सुविधाजनक सिद्ध होगा।उन्होंने कहा कि परिसर का निर्माण 18 फरवरी 2018 को रखी गई नींव के साथ शुरू हुआ था। भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इसे जी+5 स्वरूप में निर्मित किया गया है। इसमें न्यायालय, अधिवक्ता कक्ष, और अतिरिक्त कक्ष प्रस्तावित हैं। परिसर में वादकारियों के लिए बैठक व्यवस्था, बंदियों के लिए लॉकअप कक्ष, आधुनिक तकनीक, ई-कोर्ट परियोजना के तीनों मानकों का पालन, पावर बैकअप, ई-फाइलिंग सुविधा, मीटिंग हॉल, फायर फाइटिंग सिस्टम, डिजिटल रिकॉर्ड रूम, सौर ऊर्जा प्रणाली, वर्षा जल संचयन, हरियाली और समावेशी सुविधाएं उपलब्ध हैं।बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अशोक रावत ने कहा कि यह भवन आने वाले समय में देशभर में एक मिसाल बनेगा। उन्होंने बताया कि यह देश में चंडीगढ़ के बाद दूसरा ऎसा भवन है।
इसमें 54 न्यायालय संचालित होंगे और भविष्य में इसे सात मंजिला बनाकर अतिरिक्त अधिवक्ता कक्षों की व्यवस्था की जाएगी। यह भवन 150 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किया गया है।कार्यक्रम के अंत में न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री प्रकाश चंद्र मीणा ने सभी न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं, निर्माण एजेंसी, प्रशासनिक अधिकारियों एवं आमजन का आभार व्यक्त किया। यह न्यायिक भवन न केवल एक संरचना है, बल्कि न्याय, सेवा और संवेदनशीलता के मूल्यों को समर्पित एक सशक्त संदेश भी है।इस अवसर पर राजस्व मण्डल के अध्यक्ष हेमंत गेरा,
संभागीय आयुक्त श्री महेश चंद्र शर्मा, पुलिस महानिरीक्षक ओम प्रकाश, जिला कलक्टर श्री लोकबंधु, पुलिस अधीक्षक वंदिता राणा, लोक अभियोजक जयप्रकाश , न्यायिक अधिकारी, बार के सदस्य एवं बड़ी संख्या में अधिवक्ता उपस्थित रहे।

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