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डॉ. जितेन्द्र सिंह ने राजधानी में एजीएमयूटी-पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर कैडर के अधिकारियों के लिए दिल्ली आधारित लंच पार्टी का आयोजन किया।

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नई दिल्ली-केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को अपने सरकारी आवास पर अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों (आईएएस, आईपीएस, आईएफओएस) से मुलाकात की और दिल्ली स्थित जम्मू और कश्मीर एजीएमयूटी कैडर के अधिकारियों के लिए दोपहर के भोज का आयोजन किया, जो पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर कैडर से संबंधित थे, जिन्हें अब एजीएमयूटी कैडर में विलय कर दिया गया है।इस कार्यक्रम में विभिन्न बैचों और सेवाओं के अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर में अपनी सेवा के दिनों को याद किया और फिर से जुड़ने के अवसर की सराहना की। स्मृतियों और पेशेवर संबंधों से सराबोर इस कार्यक्रम ने डॉ. जितेंद्र सिंह द्वारा शुरू की गई एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाया। औपचारिक कर्तव्य की सीमाओं से परे अधिकारियों के बीच एकता और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की बातचीत हरेक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होती है।इस अवसर पर कई अधिकारियों ने याद किया कि कैसे डॉ. जितेंद्र सिंह की पहल के तहत जम्मू-कश्मीर में इस तरह की अनौपचारिक बातचीत नियमित रूप से आयोजित की जाती थी, जिससे सहकर्मियों को कार्यालय की जगहों से परे एक-दूसरे से जुड़ने का मौका मिलता था। इस अवसर पर एक अधिकारी ने टिप्पणी की, “एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जानने से पेशेवर रूप से सहयोग करना आसान हो जाता है। शासन में विश्वास महत्वपूर्ण है।”

डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में कई अधिकारियों के करियर पर प्रकाश डाला – जम्मू-कश्मीर में उनकी पहली पोस्टिंग से लेकर वरिष्ठ नेतृत्व की भूमिकाओं में उनके उत्थान को याद किया। उन्होंने 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद शुरू की गई एक बड़ी पहल को याद किया,  जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों को पिछले वर्षों में विकासात्मक प्रगति का आकलन करने और रिपोर्ट दाखिल करने के लिए अपनी पहली पोस्टिंग वाले जिलों का फिर से दौरा करने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा, “इससे सार्वजनिक सेवा के प्रति निरंतरता और व्यक्तिगत जुड़ाव की भावना पैदा हुई।”डॉ. सिंह ने राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में जम्मू और कश्मीर के निरंतर महत्व पर प्रकाश डालते हुए चेनाब ब्रिज, लिथियम खोज और लैवेंडर खेती की बैंगनी क्रांति जैसी हाल की महत्वपूर्ण परियोजनाओं का उल्लेख किया, जो इस क्षेत्र में युवा उद्यमियों को सशक्त बना रही हैं। उन्होंने कहा, “जम्मू और कश्मीर भारत की चौथी सबसे बड़ी से पहली सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की यात्रा में एक प्रमुख विकास इंजन के रूप में उभरेगा।”

उन्होंने 1990 और 2000 के दशक के आरंभ में चरम उग्रवाद के अशांत समय को भी याद किया तथा उन अधिकारियों के साहस की सराहना की, जिन्होंने युवा एसपी और डीसी के रूप में अत्यंत चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में अपनी सेवा प्रदान की।बातचीत के दौरान अधिकारियों ने खुलकर अपने अनुभव, फीडबैक और चिंताएं साझा कीं। डॉ. सिंह ने धैर्यपूर्वक उनकी बातें सुनीं। उन्हें अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन प्रदान किया, साथ ही क्षेत्रीय मुद्दों पर निरंतर ध्यान देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा, “नेतृत्व सबसे प्रभावी तब होता है जब वह किसी की सुनता है और वह हमेशा उपलब्ध रहता है।”मंत्री ने अधिकारियों को कठोर पदानुक्रम तोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने बताया कि वे कई अधिकारियों के साथ व्यक्तिगत संपर्क बनाए रखते हैं और अक्सर सीधे उनसे संपर्क करते हैं। उन्होंने कहा, “इससे समय की बचत होती है और तेजी से काम होता है – खासकर तब जब परिणाम लोगों के जीवन को प्रभावित करता हो।”कई अधिकारियों ने डॉ. सिंह के पूर्व में तथा अब दिल्ली में भी उनके सतत व्यक्तिगत जुड़ाव की सराहना की तथा इसे “प्रशासन में मानवीय स्पर्श” बताया, जो उन्हें नागरिक-केंद्रित शासन प्रदान करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है।

आईएएस से सबसे वरिष्ठ अधिकारी श्री नवीन कुमार चौधरी (1994 बैच) उपस्थित थे, उसके बाद श्री मनोज कुमार द्विवेदी (1997), श्री हृदयेश कुमार (1999) और श्रीमती सरिता चौहान (1999) उपस्थित थे। इसके अलावा श्री अजीत कुमार साहू (2003), श्री पांडुरंग कोंडबाराव पोल (2004), श्री सिमरनदीप सिंह (2008), श्रीमती सुषमा चौहान (2009), श्री शाह फैसल (2010) और श्री शेख अरशद अयूब (2013) भी उपस्थित थे। दानिक्स/सचिवालय सेवाओं के अधिकारियों में श्री प्रीतपाल सिंह (2000), श्री नवीन कुमार शाह (2000) और श्री रुशल गर्ग (2018) शामिल थे।आईपीएस से श्री पंकज सक्सेना (1992), श्री राजेश कुमार (1995), श्री मुकेश सिंह (1996), श्री दानेश राणा (1997), श्री विप्लव कुमार चौधरी (1997) और श्री विजय कुमार (1997) शामिल हुए। बातचीत में श्री अब्दुल गनी मीर, श्री एसपी पानी (2000), श्री केशव राम चौरसिया (2003), श्री अतुल कुमार (2004), श्री अमित कुमार (2006), श्री अब्दुल जब्बार (2008), श्री अंबरकर श्रीराम (2011), श्री संदीप चौधरी (2012) और श्री चंदन कोहली (2013) भी शामिल हुए। अधिकारी श्री संदीप गुप्ता और श्री शेख अरशद अयूब भी बातचीत में शामिल हुए, जिससे विचारों और यादों के जीवंत आदान-प्रदान में योगदान मिला।

 

 

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