डॉ. जितेंद्र सिंह ने युवा प्रतिभागियों के साथ कई मार्मिक बातचीत का जिक्र किया, जिनमें धौलपुर की आठवीं कक्षा की एक लड़की भी शामिल थी, जिसने अपनी छोटी बहन के कार्यक्रम से बाहर होने पर चिंता व्यक्त की थी – डॉ. सिंह ने कहा कि यह भारत के युवाओं में व्याप्त आकांक्षाओं का उदाहरण है।इस कार्यक्रम का एक प्रमुख आकर्षण जिज्ञासा कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित एक नवाचार प्रतियोगिता, एपिक हैकाथॉन 2024 के विजेताओं का सम्मान था। शीर्ष चार परियोजनाओं में रचनात्मकता, व्यावहारिकता और वैज्ञानिक अंतर्दृष्टि का विविध मिश्रण परिलक्षित हुआ:
- पंजाब के पठानकोट के एक छात्र, जप्तेग बामराह ने सोलरमेक नामक स्टर्लिंग इंजन-आधारित उपकरण विकसित करने के लिए सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है , जो संयुक्त ऊष्मा और शक्ति उत्पन्न करने के लिए संकेंद्रित सौर ऊर्जा और ऊष्मागतिकी सिद्धांतों का उपयोग करता है। शीतलक की आवश्यकता के बिना अधिकतम दक्षता के लिए डिज़ाइन किया गया उनका प्रोटोटाइप, ऊर्जा की कमी वाले ग्रामीण क्षेत्रों में संभावित अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त है।
- गाज़ियाबाद के उद्धव गुप्ता और उद्भव बंधनी ने अपनी परियोजना “दृश्यमित्रम” के लिए दूसरा स्थान प्राप्त किया – यह दृष्टिबाधित लोगों के लिए एक आर्डूइनो -संचालित, स्मार्ट वॉकवे सिस्टम है। यह सेंसर-आधारित पैदल यात्री पहचान, आरएफआईडी नेविगेशन सहायता और एक मोबाइल ऐप को एकीकृत करता है, जो दर्शाता है कि समावेशी डिज़ाइन और स्मार्ट सिटी तकनीक का मेल कैसे हो सकता है।
- रुड़की की छात्रा श्रेया विनोद ने सीबेक प्रभाव पर आधारित थर्मोइलेक्ट्रिक सामग्रियों का उपयोग करके एयर कंडीशनर की अपशिष्ट ऊष्मा से बिजली उत्पन्न करने वाला उपकरण बनाकर तीसरा स्थान प्राप्त किया। उनकी यह प्रणाली छह थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटरों को जोड़कर तापीय अंतरों को उपयोगी विद्युत शक्ति में परिवर्तित करती है। एक ऐसा विचार है जिसमें ऊर्जा-कुशल इमारतों के लिए क्षमता है।
- भुवनेश्वर की सोयल परीजा ने भी आई-स्टेथो के लिए तीसरा स्थान प्राप्त किया । यह एक वायरलेस डिजिटल स्टेथोस्कोप है जो डॉक्टर और मरीज़ के बीच शारीरिक संपर्क को कम करता है। यह उपकरण ध्वनि को ग्रहण करता है, उसे प्रवर्धित करता है, डेटा में परिवर्तित करता है और उसे संगत उपकरणों तक पहुँचाता है—यह स्वास्थ्य सेवा और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) तकनीक के सम्मिलन को दर्शाता है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “ये छात्र सिर्फ प्रयोग नहीं कर रहे हैं – वे आत्मविश्वास और स्पष्टता के साथ नवाचार कर रहे हैं।” उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ऐसी परियोजनाएं स्थायी उद्यमिता की दिशा में अहम कदम साबित हो सकती हैं, बशर्ते उन्हें समय पर सहयोग और मार्गदर्शन मिले।वर्ष 2017 में शुरू हुआ सीएसआईआर जिज्ञासा कार्यक्रम भारत के सबसे व्यापक वैज्ञानिक पहुंच प्रयासों में से एक बन गया है। 3,500 से अधिक गतिविधियों के माध्यम से 13.5 लाख से अधिक छात्रों और 80,000 शिक्षकों तक पहुँच के साथ, इसमें प्रयोगशाला भ्रमण, आभासी प्रयोगशाला, आईएसएल-सक्षम सामग्री और नवाचार प्रतियोगिताएँ शामिल हैं।डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कैसे नई शिक्षा नीति 2020 विषयों में
लचीलापन लाकर और जिज्ञासा-आधारित शिक्षा को प्रोत्साहन देकर जिज्ञासा जैसे कार्यक्रमों का समर्थन करती है। उन्होंने कहा, “पहले, विकल्प थोपे जाते थे। अब छात्र अपनी रुचियों के अनुसार विकसित हो सकते हैं—और जिज्ञासा उन्हें ऐसा करने का मंच प्रदान करती है।
“वर्ष 2047 में भारत के अपनी शताब्दी की ओर अग्रसर होने पर डॉ. जितेंद्र सिंह ने दोहराया कि देश की सबसे बड़ी शक्ति उसके युवा हैं। उन्होंने आग्रह किया, “जिज्ञासु बने रहें, साहसी बने रहें और प्रश्न पूछना कभी बंद न करें, क्योंकि हर प्रश्न में खोज का मूल छिपा होता है।”डॉ. जितेंद्र सिंह के साथ सीएसआईआर के महानिदेशक एवं डीएसआईआर के सचिव डॉ. एन. कलैसेल्वी, सीएसआईआर-एचआरडीजी की प्रमुख डॉ. गीता वाणी रायसम, सीएसआईआर-
एनपीएल के निदेशक प्रो. वेणु गोपाल अचंता और सीएसआईआर में व्यापार विकास दल की वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. डी. शैलजा डोनमपुडी सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी और विभिन्न कॉलेजों के छात्र भी इस अवसर पर उपस्थित थे।